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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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आना हो तुम्हें तो हक़ीक़त में आओयूँ सपनों में आकर ...
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'दोस्त' ऐसा नहीं है जैसे कई...
आना हो तुम्हें तो हक़ीक़त में आओयूँ सपनों में आकर ...
न तापी जाती है आग तुमसे न डाला जाता है तुम से पानी.
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया.
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
तिरा ज़िक्र क्या था अलाव था
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
मुझे इन साज़िशों में हाथ किसी आश्ना का है
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
तू बता तेरा तजरबा क्या है
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जब भी मुँह ढक लेता हूँतेरे जुल्फों के छाँव में
दिल के ज़ख्म हमको दिखाने नहीं आते
अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें
बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
इन निगाहों ने ना जाने कितने राह देखें
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
गालिब 10 शेर
तीर हर शख़्स की कमान में है
किरदार खुद उभर के कहानी में आएगा
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
जरा जरा सी खिली तबीयत ज़रा सी गमगीन हो गई !!
किसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
इतनी गुंजाइशें रखती नहीं दुनिया मिरे दोस्त!
उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती हैजश्न के ब...
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
ख़्वाब-दर ख़्वाब बेक़रारी है
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे!
पिछली रात का चाँद है या है अक्स तेरी अंगडाई का!!
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
सरों को काट के सरदारियाँ नहीं चलतीं.....
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफ़ा ही काफ़ी है
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
हमारी भी ज़िद है तुम्हें हर दुआ में माँगेंगे।
इंसान तो बच जाता है मगर ज़िंदा नहीं रहता!
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
तड़प ए दिल तड़पने से ज़रा तासकीं होती है
अपनी सारी ख़्वाहिशों को ढेर कर आया हूँ मैं
जब्र शायरी
याद रखो तो एक निशानी है हम!
जिस के साथ न था हम-सफ़र उसी का रहा
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के
उस मुसाफ़िर का सफ़र आसाँ रहा होगा
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
दिसम्बर की ये गुनगुनी धूप
पारिजात के फूलों-सा महकता रहा मैं!
जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिए
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
ज़रा सोचो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ है
अगर तुम चाय हो जाओ तो हम अख़बार हो जाएं!
जौन एलिया के तीन शेर
रूख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
दिल में है याद तेरी, लब पर जिक्र है तेरा!
ना वो मिलती है ना मैं रुकता हूँ
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
तुम मुझे ख्वाब में आ कर न परेशान करो!
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
तुम आ मिलो तो जिन्दगी मसर्रत हो जाए।
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
कितना आसान था इलाज मेरा
हम दीवानों का पता पूछना तो पूछना यूँ
रोने से कुछ भी नहीं हासिल ऐ दिल-ऐ-सौदाई
ना दूर गई, ना साथ आई!
इश्क सोते हुए भी रुलाता है!
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
हम न सोए रात थक कर सो गई
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
रो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही
आरजू शायरी
तुमको देखा है जब से
*हसरतों के सिक्के लिए, उजाले ख़रीदने निकले थे हम
चराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बाद!
तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ईलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
सिर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
छेड़ दे कोई इक नए अंदाज़ के साथ!
चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
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Thursday, December 5, 2019
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं,
शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर!
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