कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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