Wednesday, December 4, 2019

न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही

बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला 

नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला 

न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही 

जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला 

हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी 

कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला 

हज़ार तरह की मय पी हज़ार तरह के ज़हर 

न प्यास ही बुझी अपनी न हौसला निकला 

हमारे पास से गुज़री थी एक परछाईं 

पुकारा हम ने तो सदियों का फ़ासला निकला 

अब अपने-आप को ढूँडें कहाँ कहाँ जा कर 

अदम से ता-ब-अदम अपना नक़्श-ए-पा निकला!

-खलील आजमी 

No comments: