ये दाड़ियाँ, ये तिलकधारियाँ नहीं चलतीं,
हमारे अहद में मक्कारियाँ नहीं चलतीं.....
क़बीले वालों के दिल जोड़िए मेरे सरदार,
सरों को काट के सरदारियाँ नहीं चलतीं.....
- कैफ भोपाली
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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