Sunday, December 8, 2019

चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं

हौसले ज़िंदगी के देखते हैं 

चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं 

नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है 

ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं 

रोज़ हम इक अँधेरी धुँद के पार 

क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं 

धूप इतनी कराहती क्यूँ है 

छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं 

टुकटुकी बाँध ली है आँखों ने 

रास्ते वापसी के देखते हैं 

पानियों से तो प्यास बुझती नहीं 

आइए ज़हर पी के देखते हैं!

राहत इंदौरी 

No comments: