Friday, December 6, 2019

तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ

तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ

वजूद अपना मिटाता जा रहा हूँ

मुक़द्दर आज़माता जा रहा हूँ

मैं तुझ से दिल लगाता जा रहा हूँ

ज़बानी तीर खाता जा रहा हूँ

मैं फिर भी मुस्कुराता जा रहा हूँ

तुझे पाने की इक ख़्वाहिश में जानाँ

मैं कितने ज़ख़्म खाता जा रहा हूँ

अंधेरों से बहुत डरता हूँ लेकिन

चराग़ों को बुझाता जा रहा हूँ

रखे थे राह में जो दोस्तों ने

मैं सब पत्थर हटाता जा रहा हूँ

लगा कर आग अपने ही मकाँ में

मैं शो'लों को बुझाता जा रहा हूँ

अज़ल की सम्त से चल कर मैं 'आरिफ़'

अबद की सम्त जाता जा रहा हूँ 

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