यूँ सपनों में आकर मुझे न तड़पाओ
Tuesday, December 31, 2019
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'दोस्त' ऐसा नहीं है जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'दोस्त' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
आना हो तुम्हें तो हक़ीक़त में आओयूँ सपनों में आकर मुझे न तड़पाओ
आना हो तुम्हें तो हक़ीक़त में आओ
यूँ सपनों में आकर मुझे न तड़पाओ
न तापी जाती है आग तुमसे न डाला जाता है तुम से पानी.
उठा के शोले हमारे दिल में अलाव से दूर क्यों खड़ी हो,
न तापी जाती है आग तुमसे न डाला जाता है तुम से पानी.
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
मैं यादों की सर्दी मे ठिठुरता सा रेहता हूं..
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
मैं यादों की सर्दी मे ठिठुरता सा रेहता हूं..
तू दिसम्बर की धूप, सी गायब सी रहती हैं.
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया.
गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए,
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया.
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ
मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं
#दुष्यंत_कुमार
तिरा ज़िक्र क्या था अलाव था
बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था
सभी तापते रहे रात भर तिरा ज़िक्र क्या था अलाव था
Monday, December 30, 2019
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ
मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं
#दुष्यंत_कुमार
मुझे इन साज़िशों में हाथ किसी आश्ना का है
ग़ैरों को क्या पड़ी है कि रुस्वा करें मुझे
इन साज़िशों में हाथ किसी आश्ना का है
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.
- निदा फ़ाज़ली
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
राहत इंदौरी
जब भी मुँह ढक लेता हूँतेरे जुल्फों के छाँव में
जब भी मुँह ढक लेता हूँ
तेरे जुल्फों के छाँव में
कितने गीत उतर आते है
मेरे मन के गाँव में
~डॉ. कुमार विश्वास
दिल के ज़ख्म हमको दिखाने नहीं आते
दिल के ज़ख्म हमको दिखाने नहीं आते
और वो कभी मरहम लगाने नहीं आते
फंस जाते हैं हर बार चंगुल में वक़्त के
शायद हमें बचनें के बहाने नहीं आते
वो रूठ जायें तो मना लेता हूँ मैं अक़्सर
मैं रूठता हूँ तो वो मनानें नहीं आते।
इंतिहां हो चली है दर्द-ए-जिगर की
आंसू भी अब तो हमको रूलानें नहीं आते।
कोई चाहनें वाला ही बनेगा तिरा हमदर्द
फ़रिश्ते किसी का ग़म उठानें नहीं आते।
इस कदर चले गये वो हमसे रूठकर
कि ख़्वाब में भी शक़्ल दिखानें नहीं आते।
कुछ ग़ैर हैं जो पूछते हैं आज भी मुझे
अपनें मगर अब मिलनें-मिलानें नहीं आते।
'माँ' तिरे आँचल से जब से दूर हुआ हूँ
परिज़ाद मुझको लोरी सुलानें नहीं आते।
बचपन को जब से गाँव में आया हूँ छोड़कर
ख़्वाब भी तब से तो सुहानें नहीं आते।
इस पल को सिद्दत के साथ जी सके तो जी
लौटकर गुज़रे हुए जमानें नहीं आते।
आख़िरी सफ़र में लाज़िमी हैं चार लोग
इससे ज्यादा अर्थी को उठानें नहीं आते।
अपने ही मिलाते हैं हमें ख़ाक में आख़िर
ग़ैर क़भी दाग लगानें नहीं आते।
Sunday, December 29, 2019
अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें
अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें,
हो गया है ज़िंदगी का तजरबा थोड़ा बहुत!
बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा
जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझतीं हैं
बाम = terrace; दोशीज़ा = virgin
सहम जाता है ज़ीना उसके हुस्न की नज़ाकत से
थाम लेती हैं साँस सीढ़ियां, बाम से जब वो उतरता है!
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा!
इन निगाहों ने ना जाने कितने राह देखें
कई जीत देखें तो कई हार भी देखें..
इन आँखों ने न जाने कितने ख्वाब देखे..
जिंदगी जीने को तो पूरी जिंदगी पड़ी है..
इन निगाहों ने ना जाने कितने राह देखें!
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
- मिर्ज़ा ग़ालिब.
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
~मिर्ज़ा ग़ालिब
Saturday, December 28, 2019
गालिब 10 शेर
1. हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है...
2. बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
3. मत पूछ कि क्या हाल है, मेरा तेरे पीछे,
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे...
4. हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
5. न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता...
6. 'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में
7. रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जो आंख ही से न टपका, तो वो लहू क्या है...
8. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
9. आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती
10. वो आए घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
Friday, December 27, 2019
किरदार खुद उभर के कहानी में आएगा
wo chaand hai to aks bhi paani mein aayega
kirdaar khud ubhar ke kahaani mein aayega
Thursday, December 26, 2019
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो!
जरा जरा सी खिली तबीयत ज़रा सी गमगीन हो गई !!
वो आके पहलू में ऐसे बैठे कि शाम रंगीन हो गई
जरा जरा सी खिली तबीयत ज़रा सी गमगीन हो गई !! #Gulzar
किसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
न किसी की आँख का 'नूर' हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
कसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
- मुज़्तर ख़ैराबादी
इतनी गुंजाइशें रखती नहीं दुनिया मिरे दोस्त!
तू भी हो मैं भी हूँ इक जगह पे और वक़्त भी हो
इतनी गुंजाइशें रखती नहीं दुनिया मिरे दोस्त!
उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती हैजश्न के ब'अद का सन्नाटा बहुत खलता है
उस से मिलने की ख़ुशी ब'अद में दुख देती है
जश्न के ब'अद का सन्नाटा बहुत खलता है
~मुईन शादाब
Wednesday, December 25, 2019
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
~मुज़फ़्फ़र रज़्मी
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
वो बहारें थीं कि अब के बाग़ में रस्ता न था!
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
- ख़ुमार बाराबंकवी
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
~ बशीर बद्र
Tuesday, December 24, 2019
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
- ख़ुमार बाराबंकवी
Monday, December 23, 2019
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को...
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं...
Sunday, December 22, 2019
ख़्वाब-दर ख़्वाब बेक़रारी है
ख़्वाब-दर ख़्वाब बेक़रारी है
रात अब सुबह तक तुम्हारी है
कोई शुरुआत कर गया ऐसी
कि बदस्तूर खेल जारी है
हमने सब सूरतें बयां कर दीं
अब /हुजूर हुकूमत की ज़िम्मेदारी है
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की,
वरना हम कभी महक तो कभी बहक क्यों जाते।
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे!
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है,
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे!
पिछली रात का चाँद है या है अक्स तेरी अंगडाई का!!
रात की ज़ुल्फ़ें भीगी भीगी और आलम तन्हाई का
कितने दर्द जगा देता है इक झोंका पुर्वाई का!
उडते लहरों के दामन में तेरी याद की खूशबू है
पिछली रात का चाँद है या है अक्स तेरी अंगडाई का!!
Saturday, December 21, 2019
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा* कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
#राहत_इंदौरी
*नुकसान
सरों को काट के सरदारियाँ नहीं चलतीं.....
ये दाड़ियाँ, ये तिलकधारियाँ नहीं चलतीं,
हमारे अहद में मक्कारियाँ नहीं चलतीं.....
क़बीले वालों के दिल जोड़िए मेरे सरदार,
सरों को काट के सरदारियाँ नहीं चलतीं.....
- कैफ भोपाली
Friday, December 20, 2019
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा* कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
#राहत_इंदौरी
*नुकसान
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफ़ा ही काफ़ी है
"तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफ़ा ही काफ़ी है
तमाम उम्र यही आसरा ही काफ़ी है !
जहां कहीं मिलो , मिल के मुस्कुरा देना
ख़ुशी के वास्ते ये सिलसिला ही काफ़ी है
मुझे बहारों के मौसम से नहीं कुछ लेना
तुम्हारे प्यार के रंगीन फिजा ही काफी है...!!"
#अज्ञात
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
~ख़्वाजा मीर दर्द
Thursday, December 19, 2019
हमारी भी ज़िद है तुम्हें हर दुआ में माँगेंगे।
तुम चुराया करो हमें देख कर नज़रें,
हमारी भी ज़िद है तुम्हें हर दुआ में माँगेंगे।
इंसान तो बच जाता है मगर ज़िंदा नहीं रहता!
कुछ ऐसे हादसे भी ज़िंदगी में होते हैं, ऐ दोस्त
के इंसान तो बच जाता है मगर ज़िंदा नहीं रहता!
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए
गोपालदास नीरज
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
उसी पे #ज़र्ब पड़ी जो शजर पुराना था...
#आघात
तड़प ए दिल तड़पने से ज़रा तासकीं होती है
खामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है...
तड़प ए दिल तड़पने से ज़रा तासकीं होती है...
~ शाद अज़ीमाबादी
अपनी सारी ख़्वाहिशों को ढेर कर आया हूँ मैं
मर गया है कोई मुझ में उस पे मिट्टी डालिए,
अपनी सारी ख़्वाहिशों को ढेर कर आया हूँ मैं!
वो जिसे पाने की हसरत दिल में मुद्दत से रही,
उस के ही ख़ातिर उसे अब ग़ैर कर आया हूँ मैं!
Tuesday, December 17, 2019
जब्र शायरी
जब्र का मतलब होता है- वो सब कुछ जो मर्ज़ी के ख़िलाफ़ थोप दिया जाना या किसी बात के लिए मजबूर करना। हठ करना, अत्याचार अथवा जुल्म।
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
- मुज़फ़्फ़र रज़्मी
दगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं
- फ़ानी बदायुनी
जब्र ने आख़िरी बोली ईजाद की
मैं ने सारी शाइरी बेच कर आग ख़रीदी
- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
जाने जब्र है हालत कि हालत जब्र है यानी
किसी भी बात के मअनी जो हैं उन के हैं क्या मअनी
- जौन एलिया
जब्र ने आख़िरी बोली ईजाद की
मैं ने सारी शाइरी बेच कर आग ख़रीदी
- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं
- फ़ानी बदायुनी
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ
- मुनीर नियाज़ी
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं
- फ़ानी बदायुनी
अपनी तक़दीर अपने हाथ में ले
शामिल-ए-जब्र इख़्तियार भी है
- फ़िराक़ गोरखपुरी
यही जुनूँ का यही तौक़-ओ-दार का मौसम
यही है जब्र यही इख़्तियार का मौसम
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जब रात होती है तो सितारे निकलते हैं
अफ़्शाँ ज़रूर चाहिए थे ज़ुल्फ़-ए-यार में
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
जिस के साथ न था हम-सफ़र उसी का रहा
ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा
कि जिस के साथ न था हम-सफ़र उसी का रहा
बहुत सी ख़्वाहिशें सौ बारिशों में भीगी हैं
मैं किस तरह से कहूँ उम्र भर उसी का रहा
-अहमद फ़राज़
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के
ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के
- ख़ुमार बाराबंकवी
उस मुसाफ़िर का सफ़र आसाँ रहा होगा
कहा था ज़िंदगी को चार ही दिन का सफ़र जिसने
यक़ीनन उस मुसाफ़िर का सफ़र आसाँ रहा होगा
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
- अदम गोंडवी
दिसम्बर की ये गुनगुनी धूप
आसमान में छितराए बादलों से
छन कर आती
दिसम्बर की ये गुनगुनी धूप
जब आकर बैठती है
तुम्हारे गालों पर
तब सुबह होती है
मेरे इश्क़ की!
पारिजात के फूलों-सा महकता रहा मैं!
उस दिन तुमने
घंटों बात की थी
सिर मेरे कंधे पर रखकर.
तुम्हारे जाने के बाद
घंटों तक पारिजात के फूलों-सा
महकता रहा मैं!
जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिए
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए
जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिए
~ कुंवर बेचैन
Monday, December 16, 2019
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
- बहादुर शाह ज़फ़र
Sunday, December 15, 2019
ज़रा सोचो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ है
ज़रा सोचो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ है
बदन टूटा हुआ था पारा पारा क्यूँ हुआ है
ख़ुद अपनी मौज से बेगाना दरिया क्यूँ हुआ है
जो होना ही नहीं था आज ऐसा क्यूँ हुआ है
सुरों पर आसमाँ डूबा हुआ है बादलों में
दुखों की झील का पानी भी गहरा क्यूँ हुआ है
ख़ुदाया आजिज़ी से मैं ने माँगा क्या मिला क्या
असर मेरी दुआओं का ये उल्टा क्यूँ हुआ है
.ये कैसी रौशनी है और किन राहों से आई है
यकायक मेरी आँखों में अंधेरा क्यूँ हुआ है
वहाँ की आब-जू में तेल बहता है बराबर
यहाँ वादी में अपनी ख़ुश्क दरिया क्यूँ हुआ है
कहाँ जाएँगे तुझ को छोड़ कर ऐ माँ बता दे
तिरी आग़ोश में दुश्वार जीना क्यूँ हुआ है
ये किस ने कर दिया दो लख़्त मुझ को आज 'हमदम'
कहाँ हूँ मैं मिरा साया अकेला क्यूँ हुआ है
- हमदम कशमीरी
अगर तुम चाय हो जाओ तो हम अख़बार हो जाएं!
तुम्हारे साथ काटे दिन सभी इतवार हो जाएं,
अगर तुम चाय हो जाओ तो हम अख़बार हो जाएं!
Saturday, December 14, 2019
जौन एलिया के तीन शेर
जौन एलिया के तीन शेर ~
1)
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूं चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई
2)
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है
3)
मेरे कमरे को सजाने की तम्मना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
रूख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
~ निदा फ़ाज़ली
Thursday, December 12, 2019
दिल में है याद तेरी, लब पर जिक्र है तेरा!
यही दो काम मोहब्बत ने दिए है हम को,
दिल में है याद तेरी, लब पर जिक्र है तेरा!
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
~शौक़ बहराइची
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
- क़ैसर-उल जाफ़री
Wednesday, December 11, 2019
तुम मुझे ख्वाब में आ कर न परेशान करो!
तुम मुझे ख्वाब में आ कर न परेशान करो!
अब जुदाई के सफर को मेरे आसान करो,
तुम मुझे ख्वाब में आ कर न परेशान करो!
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
हमीं को शमा जलाने का हौसला न हुआ
- क़ैसर-उल जाफ़री
Tuesday, December 10, 2019
तुम आ मिलो तो जिन्दगी मसर्रत हो जाए।
थक चुका हूँ मैं गम का बोझा उठाते उठाते
तुम आ मिलो तो जिन्दगी मसर्रत हो जाए।
खुशी
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
~साहिर लुधियानवी
हम दीवानों का पता पूछना तो पूछना यूँ
ये ग़लत बात है कि लोग यहाँ रहते हैं
मेरी बस्ती में तो अब सिर्फ़ मकाँ रहते हैं
हम दीवानों का पता पूछना तो पूछना यूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ रहते हैं
~ मनोज मुंतशिर @manojmuntashir
Monday, December 9, 2019
रोने से कुछ भी नहीं हासिल ऐ दिल-ऐ-सौदाई
रोने से कुछ भी नहीं हासिल ऐ दिल-ऐ-सौदाई,
दामन की भी तबाही, आँखों की भी रुसवाई!
हम लोग समुन्दर के बिछड़े हुए साहिल है,
इस तरफ भी तन्हाई, उस तरफ भी तन्हाई!!
ना दूर गई, ना साथ आई!
ना शाम गई, ना रात आई,
जुबान पे ना वो बात आई!
ठहर गई हो लबों पे जैसे,
ना दूर गई, ना साथ आई!
इश्क सोते हुए भी रुलाता है!
आँसू निकल पडे ख्वाब मे उसको दूर जाते देखकर,
आँख खुली तो एहसास हुआ इश्क सोते हुए भी रुलाता है!
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
मुझ से इतनी वहशत है तो मेरी हदों से दूर निकल
एक समय तिरा फूल सा नाज़ुक हाथ था मेरे शानों पर
एक ये वक़्त कि मैं तन्हा और दुख के काँटों का जंगल
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
मैं तो एक नई दुनिया की धुन में भटकता फिरता हूँ
मेरी तुझ से कैसे निभेगी एक हैं तेरे फ़िक्र ओ अमल
मेरा मुँह क्या देख रहा है देख इस काली रात को देख
मैं वही तेरा हमराही हूँ साथ मिरे चलना हो तो चल!
Sunday, December 8, 2019
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं
रोज़ हम इक अँधेरी धुँद के पार
क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यूँ है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं
टुकटुकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
पानियों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं!
राहत इंदौरी
तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते, क्योंकर
दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद के साये हैं पनाहों की तरह
जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाये, "फ़ाकिर"
वो भी पेश आये हैं इंसाफ़ के शाहों की तरह
-सुदर्शन फ़ाकिर
रो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही !
- दुष्यन्त कुमार
Saturday, December 7, 2019
आरजू शायरी
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था
- बुशरा एजाज़
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
- बशीर बद्र
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
- कैफ़ी आज़मी
मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
- असरार-उल-हक़ मजाज़
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
- जौन एलिया
मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
- नासिर काज़मी
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
- बशीर बद्र
मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
- नासिर काज़मी
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
- बशीर बद्र
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
- मजरूह सुल्तानपुरी
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
- इमरान-उल-हक़ चौहान
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया
- दाग़ देहलवी
बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
- अमीर मीनाई
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
- जलील मानिकपूरी
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
- जलील मानिकपूरी
तुमको देखा है जब से
✍️
तुमको देखा है जब से..
खोये खोये है तब से..
अंधेरा हो गया है बहुत..
शमा जलाया नहीं कब से..
*हसरतों के सिक्के लिए, उजाले ख़रीदने निकले थे हम
*हसरतों के सिक्के लिए, उजाले ख़रीदने निकले थे हम!!*
*उम्र की पहली गली में ही ज़िम्मेदारियों ने लूट लिया...*
चराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बाद!
अजीब बात है दिन भर के एहतिमाम के बाद,
चराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बाद!
care, preparation, planning
व्यवस्था
Friday, December 6, 2019
तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ
तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ
वजूद अपना मिटाता जा रहा हूँ
मुक़द्दर आज़माता जा रहा हूँ
मैं तुझ से दिल लगाता जा रहा हूँ
ज़बानी तीर खाता जा रहा हूँ
मैं फिर भी मुस्कुराता जा रहा हूँ
तुझे पाने की इक ख़्वाहिश में जानाँ
मैं कितने ज़ख़्म खाता जा रहा हूँ
अंधेरों से बहुत डरता हूँ लेकिन
चराग़ों को बुझाता जा रहा हूँ
रखे थे राह में जो दोस्तों ने
मैं सब पत्थर हटाता जा रहा हूँ
लगा कर आग अपने ही मकाँ में
मैं शो'लों को बुझाता जा रहा हूँ
अज़ल की सम्त से चल कर मैं 'आरिफ़'
अबद की सम्त जाता जा रहा हूँ
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
दिल पे आंखें रक्खें तेरी सांसें देखें
सुर्ख़ लबों से सब्ज़ दुआएं फूटी हैं
पीले फूलों तुम को नीली आंखें देखें
साल होने को आया है वो कब लौटेगा
आओ खेत की सैर को निकलें कूजें देखें
थोड़ी देर में जंगल हम को आक़ करेगा
बरगद देखें या बरगद की शाख़ें देखें
मेरे मालिक आप तो सब कुछ कर सकते हैं
साथ चलें हम और दुनिया की आंखें देखें
हम तेरे होंटों की लर्ज़िश कब भूले हैं
पानी में पत्थर फेंकें और लहरें देखें
दिल पे आंखें रक्खें तेरी सांसें देखें
सुर्ख़ लबों से सब्ज़ दुआएं फूटी हैं
पीले फूलों तुम को नीली आंखें देखें
साल होने को आया है वो कब लौटेगा
आओ खेत की सैर को निकलें कूजें देखें
थोड़ी देर में जंगल हम को आक़ करेगा
बरगद देखें या बरगद की शाख़ें देखें
मेरे मालिक आप तो सब कुछ कर सकते हैं
साथ चलें हम और दुनिया की आंखें देखें
हम तेरे होंटों की लर्ज़िश कब भूले हैं
पानी में पत्थर फेंकें और लहरें देखें
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो!
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो!
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो!
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो!
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ायम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो!
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो!
ले तो आए शायरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो!
- राहत इंदौरी
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो!
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो!
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो!
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो!
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ायम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो!
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो!
ले तो आए शायरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो!
- राहत इंदौरी
ईलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है!
सिर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
jhuk kar salaam karne mein kya harj hai मगर,
sar itna mat jhukaao ki dastaar gir pade!
दस्तार- पगड़ी, turban
Thursday, December 5, 2019
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं,
शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर!
Wednesday, December 4, 2019
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
ज़रा-सा तुमसे आगे क्या बढ़ा हूँ !
तुम्हारी आँख में चुभने लगा हूँ ?
तुम्हारे क़द से क़द तो कम है मेरा,
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला
नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला
हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी
कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला
हज़ार तरह की मय पी हज़ार तरह के ज़हर
न प्यास ही बुझी अपनी न हौसला निकला
हमारे पास से गुज़री थी एक परछाईं
पुकारा हम ने तो सदियों का फ़ासला निकला
अब अपने-आप को ढूँडें कहाँ कहाँ जा कर
अदम से ता-ब-अदम अपना नक़्श-ए-पा निकला!
-खलील आजमी
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
ज़रा-सा तुमसे आगे क्या बढ़ा हूँ !
तुम्हारी आँख में चुभने लगा हूँ ?
तुम्हारे क़द से क़द तो कम है मेरा,
तुम्हारी सोच से लेकिन बड़ा हूँ!
Tuesday, December 3, 2019
छेड़ दे कोई इक नए अंदाज़ के साथ!
लय में डूबी हुई मस्ती भरी आवाज़ के साथ,
छेड़ दे कोई इक नए अंदाज़ के साथ!
चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है,
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है!
#दाग_देहलवी
.खुद को छोड़, सिर्फ दूसरों के लिये आईने हैं
✍️
हर किसी के पास, अपने अपने मायने हैं....
खुद को छोड़, सिर्फ दूसरों के लिये आईने हैं l
हर एक से अपनी तबीअ'त नहीं मिलती
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती,
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती!
कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं,
हर एक से अपनी भी तबीअ'त नहीं मिलती!
#निदा_फ़ाज़ली
बरसो की सोचते है और पल की ख़बर नही है।
सब कुछ मिला है हमको लेकिन सब्र नहीं है,
बरसो की सोचते है और पल की ख़बर नही है।
दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
~जलील मानिकपूरी
बड़ी तलब लगी है आज मुस्कुराने की!
कोई सुलह करा दे जिंदगी की उलझनों से,
बड़ी तलब लगी है आज मुस्कुराने की!
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
- बशीर बद्र
Sunday, December 1, 2019
दिया तबस्सुम से जवाब
हर मुसीबत का दिया..
एक तबस्सुम से जवाब
इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को..
रुलाया मैंने 😊
~ फ़ानी बदायुनी
(तबस्सुम = Smile, मुस्कुराहट; गर्दिश-ए-दौराँ = Ups & Downs, Difficult times of life, ज़िंदगी का मुश्किल समय)
तेरे नाम की शायरी
तुझे तेरे ही होने का,
एहसास करायेगी,
छू कर देखना मेरी डायरी को,
तेरे नाम की शायरी गुनगुनायेगी!
नश्तर भी तेज़ चाहिए नासूर के लिए
सूई की नोक से नहीं निकलेगा ये मवाद,
नश्तर भी तेज़ चाहिए नासूर के लिए!
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
ज़रूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मदद करनी हो उसकी
यार का ढांढस बंधाना हो
बहुत देरीना रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मुनीर नियाज़ी
जो नहीं मिला उसे भूल जा
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते,
कहाँ मोड़ था उसे भूल जा!
वो जो मिल गया उसे याद रख,
जो नहीं मिला उसे भूल जा!
वो तेरे नसीब की बारिशें,
किसी और छत पे बरस गईं!
दिल-ए-बे-ख़बर मेरी बात सुन,
उसे भूल जा उसे भूल जा!
मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में,
तेरी आस तेरे गुमान में!
सबा कह गई मिरे कान में,
मेरे साथ आ उसे भूल जा!
किसी आँख में नहीं अश्क-ए-ग़म,
तेरे बाद कुछ भी नहीं है कम!
तुझे ज़िंदगी ने भुला दिया,
तू भी मुस्कुरा उसे भूल जा!
कहीं चाक-ए-जाँ का रफ़ू नहीं किसी आस्तीं पे लहू नहीं
कि शहीद-ए-राह-ए-मलाल का नहीं ख़ूँ-बहा उसे भूल जा
क्यूँ अटा हुआ है ग़ुबार में,
ग़म-ए-ज़िंदगी के फ़िशार में,
वो जो दर्द था तिरे बख़्त में,
सो वो हो गया उसे भूल जा!
तुझे चाँद बन के मिला था जो,
तेरी साहिलों पे खिला था जो,
वो था एक दरिया विसाल का,
सो उतर गया उसे भूल जा!
नश्तर भी तेज़ चाहिए नासूर के लिए
सूई की नोक से नहीं निकलेगा ये मवाद,
नश्तर भी तेज़ चाहिए नासूर के लिए!
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