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तरस रही थीं ये आँखें किसी की सूरत को
सो हम भी दश्त में आब-ए-रवाँ उठा लाए
सालिम सलीम
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फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
जिगर मुरादाबादी
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आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में
सिराज लखनवी
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मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला
मुज़्तर ख़ैराबादी
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