Tuesday, May 6, 2025

राहत इंदौरी

दोस्ती जब किसी से की जाए

दुश्मनों की भी राय ली जाए

मौत का ज़हर है फ़ज़ाओं में

अब कहाँ जा के साँस ली जाए

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ

ये नदी कैसे पार की जाए

अगले वक़्तों के ज़ख़्म भरने लगे

आज फिर कोई भूल की जाए

लफ़्ज़ धरती पे सर पटकते हैं

गुम्बदों में सदा न दी जाए

कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों से

ज़िंदगी की दुआ न दी जाए

बोतलें खोल के तो पी बरसों

आज दिल खोल कर ही पी जाए

*

लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, 

यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

*

मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना

लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना

*

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

*

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,

ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,

अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

*

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,

रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।

*

मैं लाख कह दूं कि आकाश हूं ज़मीं हूं मैं

मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूं मैं

 अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को

वहां पे ढूंढ़ रहे हैं जहां नहीं हूं मैं

 मैं आइनों से तो मायूस लौट आया था

मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूं मैं

 वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी

कहीं कहीं हूं कहां हूं कहीं नहीं हूं मैं

 वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है

उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूं मैं

 सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ

ये मेरा हुक्म है हालांकि कुछ नहीं हूं मैं

 यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था

हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूं मैं

 ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएंगी

मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूं मैं

*

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो, जान थोड़ी है 

ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है 

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में 

यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है 

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन 

हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है 

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है 

हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है 

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है 

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में 

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

*

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है 

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में 

वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है 

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब 

रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है 

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं 

रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है 

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है 

*

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो 

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें 

रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो 

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो 

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो 

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में 

कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो 

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ायम रहे 

नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो 

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन 

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो 

ले तो आए शायरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ 

क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो 

*

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम

आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

*

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा

हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर

तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा

इसी गली में वो भूका फ़क़ीर रहता था

तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा

बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन

जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा

गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मो हरे-भरे रहना

जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा

*

अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है, 

ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है, 

लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, 

यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है, 

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे, 

किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है, 

सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, 

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

*

अंगुलियां यूं न सब पर उठाया करो, 

खर्च करने से पहले कमाया करो, 

जिंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे, 

बारिशों में पतंगें उड़ाया करो, 

चांद सूरज कहां,अपनी मंजिल कहां, 

ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो

*

चरागों को उछाला जा रहा है, 

हवा पर रोब डाला जा रहा है, 

न हार अपनी न अपनी जीत होगी, 

मगर सिक्का उछाला जा रहा है, 

वो देखो मयकदे के रास्ते में, 

कोई अल्ला हवाला जा रहा है, 

हमी बुनियाद का पत्थर हैं लेकिन, 

हमें घर से निकाला जा रहा है, 

जनाजे पर मेरे लिख देना यारो, 

मोहब्बत करने वाला जा रहा है


-राहत इंदौरी


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