Tuesday, May 6, 2025

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

 गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

- बशीर बद्र

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ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ

शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं

- मुज़फ़्फ़र वारसी

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ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फुज़ूल है

सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा

- हयात लखनवी

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