गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
- बशीर बद्र
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ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं
- मुज़फ़्फ़र वारसी
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ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फुज़ूल है
सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा
- हयात लखनवी
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