आप का ख़त नहीं मिला मुझ को
दौलत-ए-दो-जहाँ मिली मुझ को
- असर लखनवी
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रवाँ-दर्वाँ है ज़िंदगी चराऱ के बग़ैर भी
है मेरे घर में रौशनी चराऱ के बगैर भी
- अख्तर सईदी
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नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
मुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है
- अब्दुल अहद साज़
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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