Thursday, May 15, 2025

जौन एलिया (शायरी, शेर)

 शर्म दहशत झिझक परेशानी 

नाज़ से काम क्यूँ नहीं लेतीं

आप वो जी मगर ये सब क्या है

तुम मिरा नाम क्यूँ नहीं लेतीं

*

चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
दर्द बदनाम तो नहीं होगा
हाँ दवा दो मगर ये बतला दो
मुझ को आराम तो नहीं होगा
*
सर में तकमील का था इक सौदा
ज़ात में अपनी था अधूरा मैं
क्या कहूँ तुम से कितना नादिम हूँ
तुम से मिल कर हुआ न पूरा मैं 
*

वो किसी दिन न आ सके पर उसे
पास वादे को हो निभाने का
हो बसर इंतिज़ार में हर दिन
दूसरा दिन हो उस के आने का 

उस के और अपने दरमियान में अब
क्या है बस रू-ब-रू का रिश्ता है
हाए वो रिश्ता-हा-ए-ख़ामोशी
अब फ़क़त गुफ़्तुगू का रिश्ता है 
*

पास रह कर जुदाई की तुझ से
दूर हो कर तुझे तलाश किया
मैं ने तेरा निशान गुम कर के
अपने अंदर तुझे तलाश किया 
*

मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
तुझ से मिलने की आरज़ू की है
तेरे जाने के ब'अद भी मैं ने
तेरी ख़ुशबू से गुफ़्तुगू की है

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