Tuesday, May 6, 2025

तुझको किताबों में लिखता हूं मैं

सबको समझ नहीं आती पहेलियाँ

वे बात भी बजाते हैं लोग तालियां

ये नटखट अदायें, मरता हूं जिन पर
ये उम्र_ए_हिज्र और तेरी ये नादानियां

तुझको किताबों में लिखता हूं मैं
किताबें संभालती हैं मेरी सिसकियां

मुझको तो अपना मानते थे तुम
मुझ पे कैसी फिर ये दुस्वारियां

मैं आईने की पसंद था एक रोज
फकत,देने लगा आईना भी मुझे गालियां

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