सबको समझ नहीं आती पहेलियाँ
वे बात भी बजाते हैं लोग तालियां
ये नटखट अदायें, मरता हूं जिन पर
ये उम्र_ए_हिज्र और तेरी ये नादानियां
तुझको किताबों में लिखता हूं मैं
किताबें संभालती हैं मेरी सिसकियां
मुझको तो अपना मानते थे तुम
मुझ पे कैसी फिर ये दुस्वारियां
मैं आईने की पसंद था एक रोज
फकत,देने लगा आईना भी मुझे गालियां
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