मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक जुल्फ़ पर गुलाल,
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की...
- लाला माधव राम जौहर
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पत्ते नहीं चमन में खड़कतें तिरे बगैर,
करती है इस लिबास में हर-दम फ़मां बसंत
- इंशा अल्लाह खान इंशा
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तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत,
जिस से कि दिल की आग उठे जाग ऐ बसंत
- इंशा अल्लाह खाने इंशा
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हम-रंग की है दून निकल अशरफ़ी के साथ,
पाता है आ के रंग-ए-तलाई यहां बसंत
- मुनीर शिकोहाबादी
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दिल को बहुत अज़ीज़ है आना बसंत का,
'रहबर' की ज़िंदगी में समाना बसंत का
- जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
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साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की,
हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की
- उफ़क़ लखनवीं
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अब के बसंत आयी तो आँखें उजड़ गई,
सरसों के खेत में कोई पत्ता हरा न था
- बिमल कृष्ण अश्क
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कुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत को,
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का
- जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
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