Saturday, May 3, 2025

बसंत शायरी

 मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक जुल्फ़ पर गुलाल,

 होली की शाम ही तो सहर है बसंत की...

- लाला माधव राम जौहर

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पत्ते नहीं चमन में खड़कतें तिरे बगैर, 

करती है इस लिबास में हर-दम फ़मां बसंत

- इंशा अल्लाह खान इंशा

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तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत, 

जिस से कि दिल की आग उठे जाग ऐ बसंत

- इंशा अल्लाह खाने इंशा

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हम-रंग की है दून निकल अशरफ़ी के साथ, 

पाता है आ के रंग-ए-तलाई यहां बसंत

- मुनीर शिकोहाबादी

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दिल को बहुत अज़ीज़ है आना बसंत का, 

'रहबर' की ज़िंदगी में समाना बसंत का

- जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

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साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की, 

हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की

- उफ़क़ लखनवीं

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अब के बसंत आयी तो आँखें उजड़ गई,

सरसों के खेत में कोई पत्ता हरा न था    

- बिमल कृष्ण अश्क

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आया बसंत फूल भी शोलों में ढल गए, 
मैं चूमने लगा तो मिरे होठ जल गए .
- कुमार पाशी

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कुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत को, 

क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का

- जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर




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