Tuesday, May 6, 2025

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी

 वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया

ये चाँद किस को ढूँढ़ने निकला है शाम से

- आदिल मंसूरी

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'ज़फ़र' ज़मीं-ज़ाद थे ज़मीं से ही काम रखा

जो आसमानी थे आसमानों में रह गए हैं

- ज़फ़र इक़बाल

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गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी

वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

- बासिर सुल्तान काज़मी

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बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं

कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं

- एजाज़ तवक्‍्कल


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