वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया
ये चाँद किस को ढूँढ़ने निकला है शाम से
- आदिल मंसूरी
*
'ज़फ़र' ज़मीं-ज़ाद थे ज़मीं से ही काम रखा
जो आसमानी थे आसमानों में रह गए हैं
- ज़फ़र इक़बाल
*
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
- बासिर सुल्तान काज़मी
*
बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं
- एजाज़ तवक््कल
No comments:
Post a Comment