Saturday, May 3, 2025

तब एक ग़ज़ल हस्र के सांचे में ढले है

 दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग

तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो

*

बही होगा जो हुआ है जो हुआ करता है.

मैं ने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं

*

हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता

तुम क्‍या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो

*

दर्द ऐसा है कि जी चाहे है.ज़िंदारहिए

ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है

*

'दिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए

इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओ

*

अब लुत्फ़ इसी में है मज्ञा है तो इसी में

आ ऐ मिरे महबूब सताने के लिए आ

*

दिल दर्द की भट्टी में कई बार जले हैं

तब एक ग़ज़ल हस्र के सांचे में ढले है


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