दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
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बही होगा जो हुआ है जो हुआ करता है.
मैं ने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं
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हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो
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दर्द ऐसा है कि जी चाहे है.ज़िंदारहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
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'दिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए
इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओ
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अब लुत्फ़ इसी में है मज्ञा है तो इसी में
आ ऐ मिरे महबूब सताने के लिए आ
*
दिल दर्द की भट्टी में कई बार जले हैं
तब एक ग़ज़ल हस्र के सांचे में ढले है
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