Tuesday, May 6, 2025

ज़िंदगी एक तेरा साथ ही जीने की थी

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिल-ए-खुद-बीन,

आस्मां को ख़ुद अपनी आँखों से देख लेता है.

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ये जिंदगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा,

मरने की तमन्रा है तो मर, मरने से न डर जाये जा.

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इश्क़ ने फिराक़ को बनाया मस्त-ए-ख़ुदा, 

हर ज़रा-ए-ख़ाक में वो जलवा-ए-बे-क़यास है.

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ज़िंदगी कया है, एक रहस्यमयी सैर-ए-जहां, 

हर क़दम पे इक नया मंज़र, इक नया इम्तिहां.

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तुझ से बिछड़े तो मालूम हुआ मुझ को थे, 

ज़िंदगी एक तेरा साथ ही जीने की थी.

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दिल की धड़कन को तूने आवाज़-ए-ख़ुदा कहा,

फिराक़ की शायरी में हर लफ्ज़ है बे-बदा

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ग़म-ए-दिल सुनाने को हर एक से कहता हूं,

सुनने वाला कोई नहीं, बस ख़ुद से कहता हूं

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उम्र.गुज़री है इस आस में कि आएगा कोई, 

अब तो बस ख़्वाब ही आते हैं, हक़ीक़त नहीं

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सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां,

ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां

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सच तो ये है बड़े आराम से कहूँ,

तेरे हर लहज़ा सताने की क़सम




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