Tuesday, May 6, 2025

ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को

बस मोहब्बत बस मोहब्बत बस मोहब्बत जान-ए-मन

बाक़ी सब जज़्बात का इज़हार कम कर दीजिए

- फ़रहत एहसास

*

ये ग़म जुदा है बहुत जल्द-बाज़ थे हम तुम

ये दुख अलग है अभी काएनात बाक़ी है

- जमाल एहसानी

*

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना

यहाँ जो हादसे कल हो गए हैं

- नासिर काज़मी

*
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को
- क़तील शिफ़ाई

No comments: