Tuesday, May 6, 2025

तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा

 तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा

घर जो सुलगा तो भरा शहर भी जल जाएगा

सामने आ कि मिरा इश्क़ है मंतिक़ में असीर
आग भड़की तो ये पत्थर भी पिघल जाएगा

दिल को मैं मुंतज़िर-ए-अब्र-ए-करम क्यूँ रक्खूँ
फूल है क़तरा-ए-शबनम से बहल जाएगा

मौसम-ए-गुल अगर इस हाल में आया भी तो क्या
ख़ून-ए-गुल चेहरा-ए-गुलज़ार पे मल जाएगा

वक़्त के पाँव की ज़ंजीर है रफ़्तार-ए-'नदीम'
हम जो ठहरे तो उफ़ुक़ दूर निकल जाएगा 

अहमद नदीम क़ासमी

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