Tuesday, May 27, 2025

फिर कोई और न आया नज़र आईने में

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मुहदतें गुज़री मुलाक़ात हुई थी तुम से

फिर कोई और न आया नज़र आईने में

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रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था

ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया

- परवीन शाकिर

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क्या तिरे शहर के इंसान हैं पत्थर की तरह

कोई नःमा कोई पायल कोई झंकार नहीं

- कामिल बहज़ादी

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कोई समझे तो एक बात कहूँ

इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं

- फ़िराक़ गोरखपुरी

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