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मुहदतें गुज़री मुलाक़ात हुई थी तुम से
फिर कोई और न आया नज़र आईने में
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रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया
- परवीन शाकिर
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क्या तिरे शहर के इंसान हैं पत्थर की तरह
कोई नःमा कोई पायल कोई झंकार नहीं
- कामिल बहज़ादी
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कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
- फ़िराक़ गोरखपुरी
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