Thursday, June 5, 2025

दाग़ देहलवी (शायरी, शेर)

*

 ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

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ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं

इस दिल को क्या करूँ ये बहलता कहीं नहीं

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कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी

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फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है


-दाग़ देहलवी 

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