Tuesday, June 17, 2025

अपने होंटों पर सजाना चाहता हूँ

अपने होंटों पर सजाना चाहता हूँ

आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ


कोई आँसू तेरे दामन पर गिरा कर

बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ


थक गया मैं करते करते याद तुझ को

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ


छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा

रौशनी को, घर जलाना चाहता हूँ


आख़री हिचकी तिरे ज़ानू पे आए

मौत भी मैं शाइ'राना चाहता हूँ


-क़तील शिफ़ाई

No comments: