Tuesday, February 23, 2021

दस्तक शायरी

रात भर कोई न दरवाज़ा खुला
दस्तकें देती रही पागल हवा
- इक़बाल नवेद


पहले दरवाज़े पे दस्तक दे लूं
फिर ये दीवार गिरा भी दूंगा
- इकराम तबस्सुम

हज़ार बार ख़ुद अपने मकां पे दस्तक दी
इक एहतिमाल में जैसे कि मैं ही अंदर था
- मुशफ़िक़ ख़्वाजा


तू ने दस्तक ही नहीं दी किसी दरवाज़े पर
वर्ना खुलने को तो दीवार में भी दर थे बहुत
- जलील हैदर लाशारी

दस्तक में कोई दर्द की ख़ुश्बू ज़रूर थी
दरवाज़ा खोलने के लिए घर का घर उठा
- क़ैसर-उल जाफ़री


एक मैं हूं और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूं
कितनी दहलीज़ों पे सज्दा एक पेशानी करे
- महताब हैदर नक़वी

दस्तक देने वाले तुझ को इल्म नहीं
दरवाज़े के दोनों जानिब ताला है
- मोहम्मद मुस्तहसन जामी


दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूं वीराने में
- गुलज़ार

लम्हा लम्हा दस्तक दे कर तड़पाता है जाने कौन
रात गए मन-दरवाज़े पर आ जाता है जाने कौन
- इज़हार वारसी


ध्यान दस्तक पे लगा रहता है
और दरवाज़ा खुला रहता है
- प्रीतपाल सिंह बेताब

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