Tuesday, February 9, 2021

गालियाँ खाईं बला से मुँह तो मीठा हो गया।

क़ंद-लब का उन के बोसा बे-तकल्लुफ़ ले लिया
गालियाँ खाईं बला से मुँह तो मीठा हो गया।

रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल
आप का काम मनाना है मनाते रहिए
- हफ़ीज़ बनारसी

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना 
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना 
- अकबर इलाहाबादी

क़ंद-लब का उन के बोसा बे-तकल्लुफ़ ले लिया
गालियाँ खाईं बला से मुँह तो मीठा हो गया
- मफ़तून देहलवी

पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था 
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया 
- आग़ा शाएर क़ज़लबाश

पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह 
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ 
- आरज़ू लखनवी

बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
मुँह मिरा मीठा किया जाता नहीं
- मुनीर शिकोहाबादी

अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का 
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का 
- अरशद अली ख़ान क़लक़

क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
- मीर कल्लू अर्श

अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें
हो गया है ज़िंदगी का तजरबा थोड़ा बहुत
- मंज़र भोपाली

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम 
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ 
- अहमद फ़राज़

रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर 
मैं ने हमेशा उसे मनाया वो भी मुझे मनाए तो 
-अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रूठना तेरा मिरी जान लिए जाता है
ऐसे नाराज़ न हो हँस के दिखा दे मुझ को
- वसी शाह

रूठना चाहो तो अब हरगिज़ मनाने का नहीं
दिल को माइल कर लिया आँसू बहाने का नहीं
- उम्मीद ख़्वाजा

निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़ 
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा 
- आरज़ू लखनवी

आईना सामने न सही आरसी तो है
तुम अपने मुस्कुराने का अंदाज़ देखना
- मुर्ली धर शाद

रूठना हम से वो उस का पल पल
हर घड़ी उस को मनाना अपना
- फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो

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