Monday, February 22, 2021

मगर फिर भी ख़ुद को संभाले हुए हैं

सभी के दिलों से निकाले हुए हैं
मगर फिर भी ख़ुद को संभाले हुए हैं

कोई आबला-पा मेरे दर पे आया
उसे देखकर दिल में छाले हुए हैं

वो ख़त भेजने को कबूतर उड़ाए
नवाबों-से कुछ शौक़ पाले हुए हैं

फंसेगा मुक़द्दर कभी जाल में भी
कि मक़दूर के दाने डाले हुए हैं

मशक़्क़त बहुत की है मैंने जहाँ में
मयस्सर तभी दो निवाले हुए हैं

वतन पर लुटा दी शहीदों ने जाँ तक
कहाँ कोई उन से जियाले हुए हैं

उन्ही की वजअ से ग़ज़ल लिख रहा हूँ
उन्हीं की बदौलत रिसाले हुए हैं

मुझे हक़ मिला है किसी की नज़र का
नज़र के नज़र से क़बाले हुए हैं

वो फिर लौट आये हैं 'ख़ामोश' दिल में
पुराने ग़मों के इज़ाले हुए हैं

शब्दार्थ
आबला-पा-जिसके पाँव में छाले हो
मशक़्क़त-कड़ी मेहनत
मयस्सर- उपलब्ध होना,प्राप्त होना,available
जियाला-बहादुर,brave
रिसाला-पत्रिका,मैगज़ीन
क़बाला-बैनामे जैसा कोई दस्तावेज़,sale deed
इज़ाला-क्षतिपूर्ति compensation

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