मेरे दिल से न निकल पाई वो अनकही सी बात हो तुम
क्या बात हो तुम
में सूरज की रोशनी से सवेरा
पूर्णिमा की चाँदनी रात हो तुम
क्या बात हो तुम
जुलाई में ठंडी और दिसंबर में गर्मी करदे
वो बेमौसम बरसात हो तुम
क्या बात हो तुम
पलकें झपकतीं हैं जैसे
जुगनू चमकते हैं
घबराता नहीं जब तक मेरे साथ हो तुम
क्या बात हो तुम
वो जो तिल है तेरी गर्दन पर
खूबसूरती बढ़ाता है
लगता है चलता फिरता चाँद हो तुम
क्या बात जो तुम
देख तुम्हें मेरा मन न भरा
वो आखिरी मुलाकात हो तुम
क्या बात हो तुम
यादों से सवेरा हो
तन्हाई की रात हो तुम
क्या बात हो तुम
जो एक आशिक ने रखा हो संभालकर
वो उसका पहला गुलाब हो तुम
क्या बात हो तुम
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