Saturday, February 20, 2021

यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है

कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है 
वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है 
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है 
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है 

इक ज़रा हाथ बढ़ा दें तो पकड़ लें दामन 
उन के सीने में समा जाए हमारी धड़कन 
इतनी क़ुर्बत है तो फिर फ़ासला इतना क्यूँ है 

दिल-ए-बर्बाद से निकला नहीं अब तक कोई 
इस लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई 
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यूँ है 

तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता 
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता 
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यूँ है 

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