Friday, February 26, 2021

एक शख़्स जो सच-मुच ख़ुदाओं जैसा है

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है 
वो एक शख़्स जो सच-मुच ख़ुदाओं जैसा है 

हमारी शम-ए-तमन्ना भी जल के ख़ाक हुई 
हमारे शो'लों का आलम चिताओं जैसा है 

वो बस गया है जो आ कर हमारी साँसों में 
जभी तो लहजा हमारा दुआओं जैसा है 

तुम्हारे बा'द उजाले भी हो गए रुख़्सत 
हमारे शहर का मंज़र भी गाँव जैसा है 

वो एक शख़्स जो हम से है अजनबी अब तक 
ख़ुलूस उस का मगर आश्नाओं जैसा है 

हमारे ग़म में वो ज़ुल्फ़ें बिखर गईं 'नासिर' 
जभी तो आज का मौसम भी छाँव जैसा है

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