हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी
हम तिरी दोस्ती से डरते हैं
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
नए चराग़ जला रात हो गई प्यारे
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएं तो सोएं
बीते हुए दिन रात न याद आएं तो सोएं
अब तुझ से हमें कोई तअल्लुक़ नहीं रखना
अच्छा हो कि दिल से तिरी यादें भी चली जाएं
वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा
मगर ज़माने की बातों से डर गया होगा
हम ने दिल से तुझे सदा माना
तू बड़ा था तुझे बड़ा माना
इक उम्र सुनाएं तो हिकायत न हो पूरी
दो रोज़ में हम पर जो यहां बीत गई है
जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आंखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूं
-हबीब जालिब
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