कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊं?
इन टूटे से तारों पर,
मैं कौन तराना गाऊं?
सुन लो संगीत सलोने,
मेरे हिय की धड़कन में।
कितना मधु-मिश्रित रस है,
देखो मेरी तड़पन में।
यदि एक बार सुन लोगे,
तुम मेरा करुण तराना।
हे रसिक! सुनोगे कैसे?
फिर और किसी का गाना।
कितना उन्माद भरा है,
कितना सुख इस रोने में?
उनकी तस्वीर छिपी है,
अंतस्तल के कोने में।
मैं आंसू की जयमाला,
प्रतिपल उनको पहनाती।
जपती हूं नाम निरंतर,
रोती हूं अथवा गाती।
सुभद्राकुमारी चौहान
उन्माद 1. अत्यधिक प्रेम (अनुराग) 2. पागलपन; सनक।
No comments:
Post a Comment