Tuesday, February 23, 2021

सबके पीछे बंधी है दुम आसक्ति की !

भवानी प्रसाद मिश्र की कविता- 
सबके पीछे बंधी है दुम आसक्ति की !

ना निरापद कोई नहीं है
न तुम, न मैं, न वे
न वे, न मैं, न तुम
सबके पीछे बंधी है दुम आसक्ति की !


आसक्ति के आनन्द का छंद ऐसा ही है
इसकी दुम पर
पैसा है !


ना निरापद कोई नहीं है
ठीक आदमकद कोई नहीं है
न मैं, न तुम, न वे
न तुम, न मैं, न वे
कोई है कोई है कोई है
जिसकी ज़िंदगी
दूध की धोई है

ना, दूध किसी का धोबी नहीं है
हो तो भी नहीं है!

निरापद' यानि जिसमें कोई संकट या आपत्ति ना हो या सुरक्षित। इसके अतिरिक्त जिसमें हानि या अनर्थ का डर ना हो उसे भी निरापद कहते हैं।

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