Wednesday, August 27, 2025

जोश (शेर, शायरी)

 *

कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता

एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो


दुष्यंत कुमार

*

जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं

वही दुनिया बदलते जा रहे हैं


जिगर मुरादाबादी

*

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं

हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं


जिगर मुरादाबादी

*

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें

वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं


साहिर लुधियानवी

*

अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला

जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा


महशर बदायुनी

*

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है

जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है


शकील आज़मी

*

वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से

वो और थे जो हार गए आसमान से


फ़हीम जोगापुरी

*

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का

यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का


शहरयार

*

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है


बिस्मिल अज़ीमाबादी

*

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है


ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार

ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है


वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं

कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है


रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में

लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है


शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले

इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है


आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार

आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है


मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से

ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है


माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब

कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है


मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर

सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है


वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है


अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़

सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है


























No comments: