Wednesday, August 27, 2025

शहर (शेर, शायरी)

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है अजीब शहर की ज़िंदगी सफ़र रहा क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है

 

बशीर बद्र

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दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'

शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है

 

नासिर काज़मी

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सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'

तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं

 

अहमद महफ़ूज़

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भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया

घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला

 

अलीम मसरूर

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इक और खेत पक्की सड़क ने निगल लिया

इक और गाँव शहर की वुसअत में खो गया

 

ख़ालिद सिद्दीक़ी

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दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ

इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है

 

जावेद नासिर

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ऐसा हंगामा था जंगल में

शहर में आए तो डर लगता था

 

मोहम्मद अल्वी

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