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है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
बशीर बद्र
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दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है
नासिर काज़मी
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सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'
तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं
अहमद महफ़ूज़
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भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
अलीम मसरूर
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इक और खेत पक्की सड़क ने निगल लिया
इक और गाँव शहर की वुसअत में खो गया
ख़ालिद सिद्दीक़ी
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दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ
इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है
जावेद नासिर
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ऐसा हंगामा न था जंगल में
शहर में आए तो डर लगता था
मोहम्मद अल्वी
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