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अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे
था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था
हिमायत अली शाएर
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गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
जो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका
नुशूर वाहिदी
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देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
ख़ुश थे तमाम नेकियाँ दरिया में डाल कर
मोहम्मद अल्वी
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गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़
सज़ा को जानते हैं हम ख़ुदा जाने ख़ता क्या है
चकबस्त बृज नारायण
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मुझे गुनाह में अपना सुराग़ मिलता है
वगरना पारसा-ओ-दीन-दार मैं भी था
साक़ी फ़ारुक़ी
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लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसीबत सी हो गई
मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई
बेख़ुद मोहानी
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महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
नाज़ुक सा है जो फ़र्क़ गुनाह ओ सवाब में
नरेश कुमार शाद
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आज मैं जहाँ हूँ कल कोई और था
ये भी एक दौर है वो भी एक दौर था
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अगर तुम जान जाओ तकलीफ मेरी, तो तुम्हें मेरे मुस्कुराने पर भी तरस आयेगा
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इंसान का अगर मन बेचैन हो ना तो फिर उसे खुद के घर में भी सुकून नहीं मिलता !!
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मुझसे नाराज़ नहीं हुआ जाता, मैं बस खामोश हो जाता हूं. !!
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मुझसे मिलना हो तो खुद के किरदार में आना,
चेहरे परख लेने की बुरी आदत है मुझे..!
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