Wednesday, August 27, 2025

वफ़ा, जफ़ा (शेर, शायरी)

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वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था


दाग़ देहलवी

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ढूँड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती

ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें


अहमद फ़राज़

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उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो


अमीर मीनाई

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दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद

अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद


जिगर मुरादाबादी

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मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा

मुझ को मिलता भी क्या सज़ा के सिवा


हफ़ीज़ जालंधरी

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वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं

मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं


बहज़ाद लखनवी

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बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता

ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता


आशुफ़्ता चंगेज़ी

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ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक

न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के


ख़ुमार बाराबंकवी

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