आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं
होंठों को रोज़ इक नए दरिया की आरज़ू,
ले जाएगी ये प्यास की आवारगी कहाँ।
हम नहीं कायल किसी के इश्क-ए-इज़हार के
हमें ख्वाब बहुत मुनाफ़ा देते है उनसे एतबार के।
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है!
आसान नहीं है मुहब्बत की राहें,
उसने भेजा है काँटों समेत गुलाब!
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