Thursday, February 27, 2020

ऐ ख़ुदा उतना ही दे

ऐ ख़ुदा उतना ही दे
जितना कि मुनासिब हों
चाहे फिर वो ख़ुशी हो या ग़म हो

हो इनायतें सभी पे बराबर
क्या फर्क हो की
दुआएँं ज्यादा हो या कम हो

युहीं देखो लो ना एक बार मुड़कर
ये क्या ज़रुरी है कि
हर बार आवाज़ में भारीपन हो

क्या, तेरा चेहरा ही एक हकीक़त है
ज़रा देखो की
शायद मेरे आईना उधर हो

साक़ी इस पैमाने अब वो बात नहीं
जो उसके नाफ़ का प्याला हो
तो कुछ और बात हो !!

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