Wednesday, February 26, 2020

mohabbat शायरी

ऐ हिंदू ओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम
नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ
- लाल चन्द फ़लक


मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी
- क़ैशर शमीम

उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे
- जिगर मुरादाबादी


जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
- साहिर लुधियानवी

मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया


ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
- चरण सिंह बशर

मैं ने सीखा है ज़माने से मोहब्बत करना
तेरा पैग़ाम-ए-मोहब्बत मिरे काम आया है
- दर्शन सिंह


जिस में न चमकते हों मोहब्बत के सितारे
वो शाम अगर है तो मिरी शाम नहीं है
- नज़ीर बनारसी

अदावत कोई पैमाना नहीं है
मोहब्बत को मोहब्बत ही से तोलो
- वक़ार मानवी


मोहब्बत दोनों जानिब से मोहब्बत
न पूछो आह कैसी ज़िंदगी है
- अंदलीब शादानी

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