Monday, February 3, 2020

रूखसार शायरी

चूम लेती है लटक कर कभी आंखें कभी लब, 
तुमने जुल्फ़ों को बड़ा सर पे चढ़ा रखा है! 

ये रुख़सार-ओ-तिल-ओ-जादूई नज़र, 
क़त्ल किए जाते हैं, कि होश में रहे कैसे दिलबर...!!

उस के रुख़सार पे है और तेरे होंठ पे तिल,
तिलमिलाने की इजाज़त नहीं दी जाएगी..!!

फ़ना हो जाएं रुख़सार ए तिल पर, 
के बादलों की ओट से आज फिर चांद निकला है....!!

अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब 
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रक्खा है! 

बस हमेशा इस तरह ही हुस्न का मौसम रहे
यह गुलाबीपन तेरे रुख़सार का क़ायम रहे! 

बोसा ऐ रुखसार पे तकरार रहने दीजिए
लीजिए या दीजिए इनकार रहने दीजिए॥

अक्ल शक्ल सूरत ओ जुल्फ नैन नक्श रुख़्सार
कत्ल बेदर्दी से करते बे-तरस कातिल ए हजार !!

परदा ना कर मुझसे, कसुर तेरे रुख्सार का नही..
अपनी निगाहाेसे पुछ ले, क्या ओ कसुरवार नहीं! 

ये जो उसके रुख्सार पर गज़ब की लाली छाई है
हमारी जान जाने की वजह लोगो ने ये ही बताई है! 

उनके रुखसार पर ढलकते हुए आँसू तौबा,
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा !!

तरस गई है निगाहे उनके दिदार ए रुखसार को।
और,वौ हे की ख्वाबो मे भी नकाब मे आते है।।

दीद-ए-गुलजार इस मिस्कीन को तो कराइये 
रुखसार से अपने ज़रा गेसुओं का पर्दा तो हटाइये! 

बड़ी इतराती फिरती थी वो अपने हुस्न-ऐ-रुखसार पर
मायूस बैठी है जबसे देखि है तस्वीर कार्ड-ऐ-आधार पर!

उनकी पेशानी पर गिरती , उन चंद नागिन सी रेशमी ज़ुल्फों के सदके! 
कसम खुदा की बहुत चाहा , मगर उनके रुख़सार से नजरें ही ना हटी! 

उसकी ज़ुलफें थीं, लब-ओ-रुखसार थे, और हाथ मेरे,
कट गये रात के लमहे.. यूं ही शरारत करते करते..!

ये मासूम सा चेहरा है सुबह का आफताब, 
आँखे हैं झील लब कंवल हैं रुखसार हैं गुलाब ।

उनके रुखसार पर ढलकते हुए आँसू तौबा,
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा !!

तेरे रुखसार पर लिख दूं दास्तां जिंदगी की
एक सुबह उम्मीदों की एक शाम बेखुदी की.












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