इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने..."
~फ़ानी_बदायूँनी
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
~ सीमाब अकबराबादी.
समुंदरो के तूफानो में तैरना है मुझे कि मैं किनारो पें नहीं चलती
इतनी सी बात है मेरी जिन्दगी की,किसी के इशारो पे नहीं चलती।
बीते लम्हों को चलो फिर से पुकारा जाए
वक़्त इक साथ सनम मिलके गुज़ारा जाए
तोड़कर आज ग़लत फ़हमी की दीवारों को
दोस्तों अपने तअल्लुक़ को सँवारा जाए
बरसाें जमी धुल काे में हटाने लगा हूं,
अरसाें के बाद अब मै लिखने लगा हूं,
वक्त काफि निकल गया है, मगर मरे नही मेरे जजबात ,
काग़ज़ के टुकड़े नही रहे मगर, ज़िंदा है मेरे अल्फ़ाज़,
जिंदगी की सच्चाई काे मै करीब से छुना चाहता हूं ..
एक अधुरे ख़्वाब काे मै अब जिना चाहता हूं
एक शेर तो नहीं पर नज़्म है..
अबद हूँ मैं, शब्द हूँ,
आवाज़ हूँ मैं, साज़ हूँ,
सन्नाटे की चीख हूँ,
महफ़िल की ख़ामोशी हूँ,
कल से लेकर कल तलक,
बस मैं हूँ, मैं हूँ और मैं हूँ।
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
तूफानों से लड़ते हैं , हवा के रुख बदलते हैं
हमीं वो हैं जो गिरते हैं औ गिर गिर के संभलते हैं
अपनी खुशी के लिए जीना मुझे जिंदगी फिर जिंदगी ना लगी
दे कर किसी की आंख में आंसू मुझे बंदगी फिर बंदगी ना लगी।
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा
~ गुलज़ार
अपनी मर्जी से कहां अपने सफ़र के हम हैं,
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं!!!
-निदा फ़ाज़ली
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं!
"मत पूछ आंखो से, आंसुओ का बूंद कितना है,
उम्र थोड़ी छोटी है, पर जिया समुंदर जितना है!"
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
~अहमद फ़राज़
बरसो के रत जागो की थकन खा गई मुझे
सूरज निकल ही रहा था के नींद आ गई मुझे!
सुनो ज़िन्दगी के किस्से सबके अलग अलग है
मै जी रहा हूँ जिनके लिए शायद वो बेख़बर है
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