वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है...
ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
बशीर बद्र
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
अहमद मुश्ताक़
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
बशीर बद्र
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
अहमद मुश्ताक़
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से...
छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
असरार-उल-हक़ मजाज़
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है
अज्ञात
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
असरार-उल-हक़ मजाज़
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है
अज्ञात
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो...
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
अर्श मलसियानी
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
अर्श मलसियानी
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो...
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
मंज़र लखनवी
फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक
कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं
अज्ञात
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
मंज़र लखनवी
फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक
कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं
अज्ञात
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे...
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं
असग़र गोंडवी
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं
असग़र गोंडवी
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था...
ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था
अहमद ख़याल
मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही
कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था
मंसूरा अहमद
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था
अहमद ख़याल
मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही
कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था
मंसूरा अहमद
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी...
रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने
मुनीर नियाज़ी
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी
ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं
अलीमुल्लाह हाली
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने
मुनीर नियाज़ी
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी
ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं
अलीमुल्लाह हाली
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं...
बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
मुनव्वर राना
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
अदा जाफ़री
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
मुनव्वर राना
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
अदा जाफ़री
हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं...
दिल की आवाज़ से नग़में बदल जाते हैं,
साथ ना दें तो अपने बदल जाते हैं
अज्ञात
हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं,
चलों आज तन्हाई से बात करते हैं
अज्ञात
साथ ना दें तो अपने बदल जाते हैं
अज्ञात
हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं,
चलों आज तन्हाई से बात करते हैं
अज्ञात
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए...
कोई आवाज़ पे आवाज़ दिए जाता है
आज सोता ही तुझे छोड़ के जाना होगा
जाँ निसार अख़्तर
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
परवीन शाकिर
आज सोता ही तुझे छोड़ के जाना होगा
जाँ निसार अख़्तर
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
परवीन शाकिर
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