ग़र्द-ए-सफ़र किसी को आता नहीं नज़र।।
मंज़िल हमारी दिखती सबको हसीन सी।
पांवों के छालों से वो लेकिन हैं बे-ख़बर।।
कश्मकश है ज़िंदगी में क़ौन देखेगा इसे।
सब परीशां हैं यहां नजर जाती है जिधर।।
जानते जानते जब तलक वह जानेगा मुझे।
तब तलक ग़म-ए-दौरां ही जायेगा गुज़र।।
वही सिसकन वही आहें वही ग़म वही आंसू।
लेकर दोस्त यह दिल बता दे जायें किधर।।
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