Saturday, February 22, 2020

ग़ालिब शायरी

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, 

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले! 


न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता?”

“कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते”


हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता”

“इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना”

“मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले”

“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई”

“हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है”

“दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए”

“इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने”


उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है”

“दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है”

“इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के”

“आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न मांग”

“इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं”

“हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे”

“हर एक बात पर कहते हो तुम कि तो क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगु क्या है?
रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?”

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