मुझको तेरा शबाब ले बैठा,
रंग गोरा, गुलाब ले बैठा
कितनी पी ली, कितनी बाकी है,
मुझको यही हिसाब ले बैठा
अच्छा होता सवाल न करता,
मुझको तेरा जवाब ले बैठा
फुर्सत जब भी मिली है कामों से,
तेरे मुख की किताब ले बैठा
मुझे जब भी तुम हो याद आए,
दिन दहाड़े शराब ले बैठा!
शिव कुमार बटालवी
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