Monday, November 11, 2019

किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी


इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात[1] होगी

मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़[2] मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चराग़ों को आँखों में महफूज़[3] रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द[4] तक सफ़र ही सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी


-बशीर बद्र 


शब्दार्थ
  1.  भावनाओं में ख़र्च
  2.  शब्द
  3.  सुरक्षित
  4.  आदि से अंत

No comments: