Wednesday, November 13, 2019

बशीर बद्र शायरी 20

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी


महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है

मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
एक उस को पाने के लिए क्या-क्या किया क्या-क्या हुआ


मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूं

रात तेरी यादों ने...
रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म-नर्म गालों में


सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत

वो चाँदनी का बदन...
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है


वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं

यारों नए मौसम ने...
यारों नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते


हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

हम भी दरिया हैं...
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा


हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

अभी राह में कई मोड़ हैं...
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो


अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है

अहबाब भी...
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते


अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे

अजीब शख़्स है...
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे


इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
मुझे दुनिया से नफ़रत हो गई है

इक शाम के साए तले...
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं


इसलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं! 

No comments: