Wednesday, November 13, 2019

असरार (रहस्य) शायरी


तुझ पे खुल जाएँगे ख़ुद अपने भी असरार कई
तू ज़रा मुझ को भी रख अपने बराबर में कभी!

दफ़न कर सकता हूँ 
सीने में तुम्हारे #असरार को
और तुम चाहो तो
अफ़साना बना सकता हूँ मैं.. 

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें , 
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की

असरार दफ्न हैं सीने में इतने, निकल आएं, 
तो शरीफों को छुपने की जगह ना मिले! 
आ गईं गर बदनाम गलियों की रोशनी चौक पर, 
इज़्ज़त वालों के घर कभी चराग ना जलें!

पलकों में छुपाये रखे थे इश्क-ऐ-#असरार कई
अश्कों ने रुख़सार से मिलकर सरेआम किये फसाने की! 

हमने अपनी मोहब्बत को राज़ ए #असरार ही रखा, 
जिक्र न किया अरमानों का, दिल ए घाव को घाव ही रखा!

ये मौसम भी है कैसा खुशगवार देखो ना 
उस पे तुम्हारी ग़ज़ल का खुमार देखो ना 
जब मुस्कुरा कर उस ने वो बात केह दी 
तब खुले खामोशी के असरार देखो ना!!

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