हर लम्हा ये मेरे साथ क्यों एहसास सा कुछ है,
वो मेरा कुछ नहीं फिर भी अहबाब सा कुछ है।
न वो ख़ैरियत पूछते हैं ना वो कैफ़ियत पूछते हैं,
ये जो अहबाब हैं सारे वो बस हैसियत पूछते हैं!
चाहिए क्या मुझे अपने लिए अख़्तर लेकिन,
कुछ न करते मेरे अहबाब दुआ तो करते!
हबाब सी है ज़िन्दगी...अहबाब साथ जीये,
तल्ख़ियाँ हो बेशक लाख...ख़्बाब साथ जिये!
मेरे #अहबाब हैं आवारा हवाओं की तरह,
जब भी मिलते हैं, बहुत तेज़ कदम मिलते हैं!
अहबाब - प्रियजन
No comments:
Post a Comment