Saturday, November 9, 2019

अहबाब - प्रियजन शायरी

हर लम्हा ये मेरे साथ क्यों एहसास सा कुछ है,
वो मेरा कुछ नहीं फिर भी अहबाब सा कुछ है।




न वो ख़ैरियत पूछते हैं ना वो कैफ़ियत पूछते हैं, 
ये जो अहबाब हैं सारे वो बस हैसियत पूछते हैं!


चाहिए क्या मुझे अपने लिए अख़्तर लेकिन, 
कुछ न करते मेरे अहबाब दुआ तो करते! 


हबाब सी है ज़िन्दगी...अहबाब साथ जीये, 
तल्ख़ियाँ हो बेशक लाख...ख़्बाब साथ जिये! 

मेरे #अहबाब हैं आवारा हवाओं की तरह, 
जब भी मिलते हैं, बहुत तेज़ कदम मिलते हैं! 

अहबाब - प्रियजन 

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