कोई कब तक महज सोचे
कोई कब तक महज गाये..
इलाही क्या ये मुमकिन है
कि कुछ ऐसा भी हो जाए..
मेरे महताब उसकी रात के
आगोश में पिघले..
मैं उसकी नींद में जागूं
वो मुझ में घुल के सो जाए!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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