Tuesday, November 12, 2019

उर्दू शायरी

सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं
- अज्ञात


बात करने का हसीं तौर-तरीक़ा सीखा
हम ने उर्दू के बहाने से सलीक़ा सीखा
- मनीश शुक्ला

वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए
ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए
- अहमद वसी


हिन्दी में और उर्दू में फ़र्क़ है तो इतना
वो ख़्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना
- अज्ञात

उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है
वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बाँ आई
- रविश सिद्दीक़ी


वो उर्दू का मुसाफ़िर है यही पहचान है उस की
जिधर से भी गुज़रता है सलीक़ा छोड़ जाता है
- अज्ञात

जो दिल बांधे वो जादू जानता है
मिरा महबूब उर्दू जानता है
- अनीस देहलवी


तिरे सुख़न के सदा लोग होंगे गिरवीदा
मिठास उर्दू की थोड़ी बहुत ज़बान में रख
- मुबारक अंसारी



नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो

कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते

- दाग़ देहलवी



वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का

रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू

- बशीर बद्र

1 comment:

Optimising Guru said...

सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं

इस शेर को हिंदुस्तानी शायर जनाब मुहम्मद आसिफ़ अली जी ने लिखा है और अपने यहाँ शायर की जगह अज्ञात लिख रखा है। इसे बदलिए।